Sunday, August 06, 2023

बुनी हुई रस्सी

बुनी हुई रस्सी को घुमायें उल्टा 
तो वह खुल जाती हैं 
और अलग-अलग देखे जा सकते हैं 
उसके सारे रेशे 
मगर कविता को कोई खोले 
ऐसा उल्टा तो साफ नहीं होंगे 
हमारे अनुभव इस तरह 
क्योंकि अनुभव तो हमें 
जितने इसके माध्यम से हुए हैं 
उससे ज्यादा हुए हैं दूसरे माध्यमों से 
व्यक्त वे जरूर हुए हैं यहाँ 
कविता को बिखरा कर देखने से 
सिवा रेशों के 
क्या दिखता है 
लिखने वाला तो 
हर बिखरे 
अनुभव के रेशे को 
समेट कर लिखता है ! 

-भवानीप्रसाद मिश्र


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